Sunday 10 June 2012

वास्तव में हज़रत मुहम्मद साहब एक दिव्य प्रकाश पुंज हैं- डॉ दिलीप सिंह

alq2विश्व में एक से बढकर एक महापुरुष पैदा हुए हैं | भगवन श्री राम, कृष्ण, महावीर स्वामी,गौतम बुध , हज़रत मुहम्मद साहब,गुरु नानक, हज़रत ईसा मसीह, हज़रत मूसा ,कन्फयुशियास ,लाआत्स, ऐसे ही महापुरुष हैं | इसमें से ईसाई धर्म के प्रवर्तक हज़रत इसा मसीह ,इस्लाम धर्म के चलानेवाले हज़रत मुहम्मद साहब,सिख पंथ के गुरुनानक देव, बोद्ध एवं जैन धर्म के गौतम बुध एवं महावीर स्वामी का नाम आज के आधुनिक युग में अनुकरणीय है |

बारावफात संसार भर में फैले सभी मुस्लिम बंधुओं का प्रमुख पर्व है क्योंकि इसी दिन हज़रात मुहम्मद साहब का अविर्भाव हुआ तथा इसी दिन तिरोधान भी हुआ था | बारावफात को ईद- ए- मिलादुन नबी भी कहते हैं |

हज़रत मुहम्मद साहब का जन्म अरब देश के मक्का नगर में आज से लगभग १४४० वर्ष पूर्व ५७० इ० में हुआ था उनकी माता का नाम अमीना बेगम तथा पिता का नाम अब्दुल्ला था | उनकी माता का अवसान हज़रत मुहम्मद साहब कि छोटी सी उम्र में ही हों गया था इसी कारण उनकी परवरिश उनके चाचा अबुतालिब के घर हुई |वे कुरैशी घराने में पैदा हुए थे | हज़रत मुहम्मद साहब के जन्म के समय अरब देश में भयंकर रक्तपात और झगडे हुआ करते थे| पूरा अरब समाज छोटे बड़े सैकडो कबीलो में बंटा हुआ था | बाल विवाह बहुदेवाद ,मूर्तिपूजा एवं अन्धविश्वास फैले हुए थे| लड़कियां युद्ध और विवाद का कारण बनती थी इसलिए लोग लड़कियों के पैदा होते ही ज़मीन पे जिंदा गाड देते थे | बात बात में खून खराबा हों जाना एक आम सी बात थी| कहा जाता है कि उस समय मक्का में ८०० से अधिक देवी देवताओं की मूर्तियां हुआ करती थी|

इन्ही विकट और भयंकर परिस्थितियों में हज़रत मुहम्मद साहब का जन्म हुआ | वे पहले बकरियाँ चराया करते थे | बड़े होने पे उन्होंने अपने चाचा के साथ  व्यापार करना शुरू किया |धीरे धीरे उनकी ईमानदारी के चलते उनकी ख्याति दूर दूर तक फैल गयी | उनकी शादी धनी महिला जनाब इ खादिजा के साथ हों गयी| वे बचपन से ही गहन चिन्तक में लीन रहा करते थे और सोंचा करते कि किस तरह अरब में फैली बुराईयों को दूर किया जा सकता है ? वे अक्सर मक्का में स्थित “हिरा” नाम की गुफा में जाकर घंटों गहन चिंतन मन में डूब जाया करते थे |उसी क्रम में एक दिन देवदूत जिब्रईल प्रकट हुए और  उस अल्लाह के नाम से जिसने इस सारी दुनिया को बनाया है हज़रत मुहम्मद साहब को दिव्य ज्ञान प्रदान किया , जो कि अल्लाह का दिया हुआ था | उस  दिव्य ज्ञान को प्राप्त करते ही हज़रात मुहम्मद साहब ने इस्लाम धर्म का प्रचार शुरू कर दिया |

प्रारम्भ के दिनों में उन्हें अनेक कठिनाइयों और संघर्षों का सामना करना पड़ा जिसमे कई बार उनके प्राण भी संकट में पड़ जाया करते थे पर उन्होंने हार नहीं मानी | प्रचार प्रसार के इसी क्रम में उनके शत्रुओं कि संख्या भी बढती जा रही थी |लेकिन मदीना में उनकी लोक्रियता अनवरत बढती जा रही थी | एक दिन उनके शत्रुओं ने मक्का में उनको मारने का निश्चय कर लिया लेकिन हज़रत मुहम्मद साहब को उनके विश्वासपात्रों के द्वारा इस बात का पता चल गया और वो अपनी जगह हज़रत अली को सुला के अपने मित्र अबुबकर के साथ रात में ही मदीना चले गए |यह महायात्रा हिजरत कहलाई और इसी समय से हिजरी सन शुरू हुआ |

जब शत्रुओं ने देखा कि बिस्तर पे हज़रत मुहम्मद साहब कि जगह हज़रत अली लेटे हैं तो वो समझ गए कि हज़रत मुहम्मद साहब बच निकले तब शत्रुओं ने उनका  पीछा करना शुरू किया | एक स्थान पे शत्रु बहुत करीब आ गया तो अबुबकर घबरा गए और दोनों एक गुफा में जाकर छिप गए|  यह एक चमत्कार ही था कि उनदोनो के गुफा में जाते ही गुफा द्वार पे मकड़ी ने जाला लगा दिया और कबूतर ने अंडे दे दिए | शत्रुओं ने गुफा द्वार पे मकड़ी के जाले और अंडे देखे तो समझे यहाँ कोई नहीं आया है |

हज़रत मुहम्मद साहब की लोकप्रियता उनकी ईमानदारी और इंसानियत के पैगाम देने के कारण बढती गयी और वो एक के बाद एक शत्रुओं को जीतते गए और जल्द ही मक्का भी जीत लिया | एक मशहूर किस्सा उनके जीवन का है कि एक बुढिया हज़रत मुहम्मद साहब कि राह में क्रोधवश रोजाना कांटे फेका करती थी | एक दिन बीमारी के कारण उसने कांटे नहीं फेंके तो  हज़रत मुहम्मद साहब ने लोगों से पुछा और जब पता लगा कि वो  बुढिया बीमार है तो उसका हाल चाल पूछने उसके  घर गए| वो बुढिया द्रवित को के उनकी अनुयायी बन गयी |

हज़रत मुहम्मद साहब कि लोकप्रियता और इस्लाम धर्म का दायरा बढ़ता गया और उनके अवसान के बाद उनके    उत्तराधिकारियों ने इस काम को जारी रखा और यह धर्म पुर्तगाल, अरब, फ़्रांस ,भारत, इंडोनेशिया ,मलेशिया ,अफ्रीका तक फैल गया | आज लगभग १६० करोड इसके अनुयायी हैं|

एक अल्लाह कि इबादत, सच्चाई ,ईमानदारी,भाईचारा, शांति,महिलाओं की इज्ज़त, इंसानों की आपसी बराबरी इत्यादि इस्लाम धर्म की प्रमुख शिक्षाएं हैं| आज कुछ लोग भले ही इस्लाम के मूल सिधांतों से हट कर इस शांति के धर्म को आतंक का जामा  पहनाकर इसे बदनाम करने पे लगे हैं लेकिन हज़रात मुहम्मद साहब कि महागाथा और सिधांतों के कारण जल्द ही ऐसे लोग बेनकाब होंगे|

वास्तव में हज़रत मुहम्मद साहब एक दिव्य प्रकाश पुंज हैं जिनके अलोक से इस्लामी जगत आज भी जगमगा रहा है.

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लेखक : डॉ दिलीप कुमार सिंह

(न्यायविद, ज्योतिर्विद )

4 comments:

Shah Nawaz said...

बेहतरीन लेख, बढ़िया ब्लॉग...

HAKEEM YUNUS KHAN said...

Nice post.

Please have a look 0n

www.kanti.in

Edara -E-Bani Hashim said...

माशाल्लाह

naushad ali said...

allah apke nek kamo ko kabul kare...