प्राचीन भारत में “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” का उद्गोष था | ऋग्वेद में नववधू को “साम्राज्ञी श्वसुरे भव” का आशीर्वाद मिलता है। तुम श्वसुर के घर की साम्राज्ञी होओ। भार्या श्रेष्ठतम सखा। पत्नी को मोक्ष का हेतु माना गया। कोई भी धार्मिक कार्य पत्नी के बिना पूर्ण एवं सम्पन्न नहीं हो सकता था। श्रीराम ने भी सीताजी की स्वर्ण प्रतिमा बनवाकर यज्ञ पूरा करवाया था। शास्त्रों में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जिनसे स्पष्ट होता है कि पत्नी का अपमान असहनीय था। अपाला, घोषा,गार्गी, मैत्रेयी, सीता,अनुसूया,नर्वदा,सुलभा, जैसे नारियों ने देश का इतिहास बनाया अवं गढ़ा है |जिस समाज में “मातृदेवो भव:” का आदर्श था, पितु: सहस्त्रगुणा माता की भावना ,प्रबल थी फिर उसी पावन देश में माँ बहन पत्नी आदि बहुविध रूपों में बहु प्रकार पूजित प्रशंसित नारी की इस दुर्गति के क्या कारण हैं ,जबकि देश आज आज़ाद है और नारियां हर छेत्र में कीर्तिमान बना रही हैं | प्रगतिशील्य नारियों का एक वर्ग नारी को हर बंधन से हर एक मर्यादा से परे रह के उच्छश्रृंखलता तक ले जाना चाहता हैं तो रुढ़िवादी पुरुष धैर्य नैतिकता की दुहाई देकर उसी दासता में क़ैद रखना चाहता है |
वास्तव में आज नारी पुरुष दोनों भटक कर समन्वय की जगह परस्पर विरोधी बनकर इस समाज को तोड़ने पे अमादा हैं | ऐसे में कुछ बुद्धिजीवी ,शिछित महिलाएं “तपन में शीतल मंद बयार” की तरह हैं जिनका मानना है कि स्वतंत्रता में ही नारी विकास संभव है उच्छश्रृंखलता में नहीं | और नारी की यह स्वतंत्रता वो हासिल कर सकती है अच्छे संस्कारों को अपना कर और दूसरों को दे कर |यदि नारी अपने बच्चों को सही संस्कार दे तो शायद वे बच्चे बलात्कार जैसे घ्रणित काम तो दूर की बात है नारी को बुरी द्रष्टि से देखने का साहस तक नहीं करेंगे |
अब जब बात संस्कारों तक आ ही पहुंची है तो आज के सभ्य वैज्ञानिक मानव के सबसे पवित्र बधन का नया विकृत रूप भी देखते चलें | औधोगिक क्रांति के पूर्व पूरा विश्व हे प्रकार के कचरों तथा प्रदुषण से मुक्त था तथा वैवाहिक समारोहों का आयोजन बड़ी ही सादगी सरलता परन्तु अतिशय सम्मान की भावना से किया जाता था |शहनाई बांसुरी जैसे वाधयन्त्र अत्यंत ही सुरीले सुर में बजते थे | पूरे गाँव शहर और कस्बे का हर व्यक्ति खुद को विवाह से ऐसे जोड़ के रखता था जैसे खुद उसके घर विवाह हो रहा हो | आज तो लोग बंदरो की तरह आते हैं जानवरों की तरह खाते हैं और घोड़ों की तरह गायब हो जाते हैं | न किसी से कोई मतलब न वास्ता न सरोकार और न ही बड़ो के आदर सम्मान की कोई भावना | डीजे आर्केस्ट्रा का दिल हिलाने वाला शोर ,बेहूदा और अश्लील गाने ,अर्धनग्न नारियों का नाचना, शराब और मस्ती ,आपस में मार पीट और सिंहासन पे दुल्हन को बिठा के उसकी लज्जा को उतार देना और उसके बाद उसी घूँघट में रहने की नसीहत देना,फ़ालतू की शान दिखाने के लिए लाखों करोड़ो का खर्च और उसपे से दहेज़ की मांग आज के वैज्ञानिक सभ्य ,मानव की बुद्धिमानी पे एक प्रश्न चिन्ह लगा देता है |
क्या ऐसा समाज औरत की इज्ज़त कर सकता है ? बच्चों की सही परवरिश और अच्छे संस्कारो उन्हें कैसे दिए जाए इस बात पे ध्यान देने की आज बहुत आवश्यकता है |
Dileep Kumar Singh ,Juri Judge, Member Lok Adalat,DLSA,
Astrologist,Astronomist,Jurist,Vastu and Gem Kundli Expert. Cell:९४१५६२३५८३
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