जिस बात को न्यायाधीश कामनी ला ने हाल में ही कहा की बलात्कारियों को नपुंसक बना देना चाहिए अर्थात उनका बंध्याकरण कर देना चाहिए उस बात को मैं १९८५ ई से ही कहता अवं लिखता चला आ रह हूँ |मेरा मानना है की ऐसे विकृत चित्त , निडर यौन अपराधी को प्रथमत: तो बंध्या क्र देना चाहिए तथा फिर से यदि वो यही अपराध करे तो उसके यौनांग काट देने चाहिए| १९९२-९३ में मेरा जब यह लेख छपा तो जौनपुर के जिला जज श्री ओंकरेश्वेर भट्ट और यहाँ के ९०% जजों ने मेरे इन विचारों का समर्थन किया था लेकिन १०% ने इस पे बवाल भी मचाया | कारन स्पष्ट करने की आवश्यकता नहीं है | कुछ वर्ष पहले एक साहसी महिला ने एक लम्पट और व्यभिचारी बाबू साहब का लिंग ही काट लिया तो वो कहीं मुह दिखने लायक नहीं रहे | और यह बात जनपद निवासी जानते हैं की इस घटना के बाद आज तक किसी ने बलात्कार का दुस्साहस नहीं किया | बलात्कार के मामले में सिर्फ कानून, पुलिस अवं प्रशासन के सहारे बैठना सही नहीं और यह इसका समाधान भी नहीं | ररूस की ड्यूमा ने यौनाचारी कोण बंध्या करने का बिल पास कर दिया है |
बलात्कार की भारतीय अवं विदेशी परिभाषा :- भारतीय दण्ड विधान में बलात्कार धरा ३७५ में तथा अप्राकृतिक सम्भोग को धरा ३७७ में परिभाषित किया गया है ” किसी स्त्री की इच्छा के विरुद्ध ,उसकी सहमती के बिना, भय या चोट का डर दिखा के उसकी सहमती के साथ,या किसी स्त्री को पत्नी होने का विश्वास दिला के,पागल स्त्री की सहमती ले कर या उसे मादक पदार्थ खिला कर अथवा १६ वर्ष से कम की स्त्री के साथ सहमती के साथ मैथुन बलात्कार कहलाता है | यहाँ यह ध्यान देना चैये की मैथुन के लिए लिंग प्रवेश काफी है |
बलात्कार में प्रेम या मित्रता साबित हो जाने पे वोह बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता | यधपि केवल पीडिता के बयान पे भी सजा हो सकती है | बलात्कार की न्यूनतम सजा ७ साल से लेकर आजीवन कारावास तक की है |
बलात्कार के कारण :-बलात्कार एक ऐसी सामाजिक बीमारी है जिसका जन्म ही मानव सभ्यता के सतत साथ हुआ है | देव,दानव ,यक्ष ,राक्षस , मानव, गन्धर्व सभी के समाजों में बलात्कार होता आया है | वास्तव में बलात्कार बड़ी ही जटिल सामाजिक समस्या है जिसका कारन भी खोज पाना हमेशा संभव नहीं होता |
गहनतम सर्वेक्षन अवन शोध यह बताते हैं की केवल ५% मामले ही वास्तव में बलात्कार होते हैं बाकी दोनों पछों की सहमती से,लालच ,स्वार्थ,के वशीभूत हो कर किये जाते हैं| पकडे जाने पे इसका दोष केवल पुरुष पे दाल दिया जाता है क्योंकि स्त्री को बलात्कारी या व्यभिचारी माना ही नहीं गया है | अब पुरुष पर यह भार होता है की वोह साबित करे की उसने बलात्कार जैसा जघन्य अपराध नहीं किया है बल्कि यह सहमती से हुआ है | अनुभव अवन शोध यह भी बताते हैं की इस प्रकार की शिकायतों में पहल स्त्री ही करती है जो बाद में बलात्कार का कारन बनती है |
इस विषय पे खुलकर यह बात सामने नहीं आ पति है की बलात्कार किन कारणों से हुआ है क्योंकि पीडिता खुलकर इसका वास्तविक कारन नहीं बताती है | यह भी ध्यान देने वाली बात है की बलात्कारी पे विशवास नहीं किया जा सकता | इस विषय पे स्वतंत्र रूप से सर्वेक्षन बहुत कम हुई हैं और समाज खुल कर इस विषय पे सबके सामने नहीं बोलता | अधिकतर नतीजे किसी न किसी दबाव के साथ आते हैं कभी दबंग पुरुष प्रधान का दबाव और कभी महिलाओं की संस्थाओं का दबाव | सत्य जैसे कोई सुनना या जानना ही नहीं चाहता हो|
कामिनी झा की बात से मैं पूर्ण सहमत हूँ की बलात्कारी एक जीवित मानव बम है और बलात्कार साबित होने पे बलात्कारी को बंध्या कर देना चाहिए या उसके गुप्तांग कार देने चाहिये ताकि वो ऐसी घटनाओं पे अंकुश लग सके |
लेखक Dr. Dileep Kumar Singh Juri Judge, Member Lok Adalat,DLSA, Astrologist,Astronomist,Jurist,Vastu and Gem Kundli Expert. Cell:९४१५६२३५८३
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