Tuesday, 9 April 2013

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता”


Respectप्राचीन भारत में “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” का उद्गोष था | ऋग्वेद में नववधू को “साम्राज्ञी श्वसुरे भव” का आशीर्वाद मिलता है। तुम श्वसुर के घर की साम्राज्ञी होओ। भार्या श्रेष्ठतम सखा। पत्नी को मोक्ष का हेतु माना गया। कोई भी धार्मिक कार्य पत्नी के बिना पूर्ण एवं सम्पन्न नहीं हो सकता था। श्रीराम ने भी सीताजी की स्वर्ण प्रतिमा बनवाकर यज्ञ पूरा करवाया था। शास्त्रों में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जिनसे स्पष्ट होता है कि पत्नी का अपमान असहनीय था। अपाला, घोषा,गार्गी, मैत्रेयी, सीता,अनुसूया,नर्वदा,सुलभा, जैसे नारियों ने देश का इतिहास बनाया अवं गढ़ा है |जिस समाज में “मातृदेवो भव:” का आदर्श था, पितु: सहस्त्रगुणा माता की भावना ,प्रबल थी फिर उसी पावन देश में माँ बहन पत्नी आदि बहुविध रूपों में बहु प्रकार पूजित प्रशंसित नारी की इस दुर्गति के क्या कारण हैं ,जबकि देश आज आज़ाद है और नारियां हर छेत्र में कीर्तिमान बना रही हैं | प्रगतिशील्य नारियों का एक वर्ग नारी को हर बंधन से हर एक मर्यादा से परे रह के उच्छश्रृंखलता तक ले जाना चाहता हैं तो रुढ़िवादी पुरुष धैर्य नैतिकता की दुहाई देकर उसी दासता में क़ैद रखना चाहता है |

वास्तव में आज नारी पुरुष दोनों भटक कर समन्वय की जगह परस्पर विरोधी बनकर इस समाज को तोड़ने पे अमादा हैं | ऐसे में कुछ बुद्धिजीवी ,शिछित महिलाएं “तपन में शीतल मंद बयार” की तरह हैं जिनका मानना है कि स्वतंत्रता में ही नारी विकास संभव है उच्छश्रृंखलता में नहीं | और नारी की यह स्वतंत्रता वो हासिल कर सकती है अच्छे संस्कारों को अपना कर और दूसरों को दे कर |यदि नारी अपने बच्चों को सही संस्कार दे तो शायद वे बच्चे बलात्कार जैसे घ्रणित काम तो दूर की बात है नारी को बुरी द्रष्टि से देखने का साहस तक नहीं करेंगे |

अब जब बात संस्कारों तक आ ही पहुंची है तो आज के सभ्य वैज्ञानिक मानव के सबसे पवित्र बधन का नया विकृत रूप भी देखते चलें | औधोगिक क्रांति के पूर्व पूरा विश्व हे प्रकार के कचरों तथा प्रदुषण से मुक्त था तथा वैवाहिक समारोहों का आयोजन बड़ी ही सादगी सरलता परन्तु अतिशय सम्मान की भावना से किया जाता था |शहनाई बांसुरी जैसे वाधयन्त्र अत्यंत ही सुरीले सुर में बजते थे | पूरे गाँव शहर और कस्बे का हर व्यक्ति खुद को विवाह से ऐसे जोड़ के रखता था जैसे खुद उसके घर विवाह हो रहा हो | आज तो लोग बंदरो की तरह आते हैं जानवरों की तरह खाते हैं और घोड़ों की तरह गायब हो जाते हैं | न किसी से कोई मतलब न वास्ता न सरोकार और न ही बड़ो के आदर सम्मान की कोई भावना | डीजे आर्केस्ट्रा का दिल हिलाने वाला शोर ,बेहूदा और अश्लील गाने ,अर्धनग्न नारियों का नाचना, शराब और मस्ती ,आपस में मार पीट और सिंहासन पे दुल्हन को बिठा के उसकी लज्जा को उतार देना और उसके बाद उसी घूँघट में रहने की नसीहत देना,फ़ालतू की शान दिखाने के लिए लाखों करोड़ो का खर्च और उसपे से दहेज़ की मांग आज के वैज्ञानिक सभ्य ,मानव की बुद्धिमानी पे एक प्रश्न चिन्ह लगा देता है |
क्या ऐसा समाज औरत की इज्ज़त कर सकता है ?  बच्चों की सही परवरिश और अच्छे संस्कारो उन्हें कैसे दिए जाए  इस बात पे ध्यान देने की आज बहुत आवश्यकता है  |
Dileep Kumar Singh ,Juri Judge, Member Lok Adalat,DLSA,
Astrologist,Astronomist,Jurist,Vastu and Gem Kundli Expert. Cell:९४१५६२३५८३

Sunday, 17 February 2013

बलात्कार एवं उसका निवारण -डॉ दिलीप कुमार सिंह

जिस बात को न्यायाधीश कामनी ला ने हाल में ही कहा की बलात्कारियों को नपुंसक बना देना चाहिए अर्थात उनका बंध्याकरण कर देना चाहिए उस बात को मैं १९८५ ई से ही कहता अवं लिखता चला आ रह हूँ |मेरा मानना   है की ऐसे विकृत चित्त , निडर यौन अपराधी को प्रथमत: तो बंध्या क्र देना चाहिए तथा फिर से यदि वो यही अपराध करे तो उसके यौनांग काट देने चाहिए|  १९९२-९३ में मेरा जब यह लेख छपा तो जौनपुर के जिला जज श्री ओंकरेश्वेर भट्ट और यहाँ के ९०% जजों ने मेरे इन विचारों का समर्थन किया था लेकिन १०% ने इस पे बवाल भी मचाया | कारन स्पष्ट करने की आवश्यकता नहीं है | कुछ वर्ष पहले एक साहसी महिला  ने एक लम्पट और व्यभिचारी बाबू साहब का लिंग ही काट लिया तो वो कहीं मुह दिखने लायक नहीं रहे | और यह बात जनपद निवासी जानते हैं की इस घटना के बाद आज तक किसी ने बलात्कार का दुस्साहस नहीं किया | बलात्कार के मामले में सिर्फ कानून, पुलिस अवं प्रशासन के सहारे बैठना सही नहीं और यह इसका समाधान भी नहीं | ररूस की ड्यूमा ने यौनाचारी कोण बंध्या करने का बिल पास कर दिया है |

बलात्कार की भारतीय अवं विदेशी परिभाषा :- भारतीय दण्ड विधान  में बलात्कार धरा ३७५ में तथा अप्राकृतिक सम्भोग को धरा ३७७ में परिभाषित किया गया है ” किसी स्त्री की इच्छा के विरुद्ध ,उसकी सहमती के बिना, भय या चोट का डर दिखा के उसकी सहमती के साथ,या किसी स्त्री को पत्नी होने का विश्वास दिला के,पागल स्त्री की सहमती ले कर या उसे मादक पदार्थ खिला कर अथवा १६ वर्ष से कम की स्त्री के साथ सहमती के साथ मैथुन बलात्कार कहलाता है | यहाँ यह ध्यान देना चैये की मैथुन के लिए लिंग प्रवेश काफी है |

बलात्कार में प्रेम या मित्रता साबित हो जाने पे वोह बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता | यधपि केवल पीडिता के बयान पे भी सजा हो सकती है | बलात्कार की न्यूनतम सजा ७ साल से लेकर आजीवन कारावास तक की है  |

बलात्कार के कारण  :-बलात्कार एक ऐसी सामाजिक बीमारी है जिसका जन्म ही मानव सभ्यता के सतत साथ हुआ है | देव,दानव ,यक्ष ,राक्षस ,  मानव, गन्धर्व सभी के समाजों में बलात्कार होता आया है | वास्तव में बलात्कार बड़ी ही जटिल सामाजिक समस्या है जिसका कारन भी खोज पाना हमेशा संभव नहीं होता |

गहनतम सर्वेक्षन अवन शोध यह बताते हैं की केवल ५% मामले ही वास्तव में बलात्कार होते हैं बाकी  दोनों पछों की सहमती से,लालच ,स्वार्थ,के वशीभूत हो कर किये जाते हैं| पकडे जाने पे इसका दोष केवल पुरुष पे दाल दिया जाता है क्योंकि स्त्री को बलात्कारी या व्यभिचारी माना  ही नहीं गया है | अब पुरुष पर यह भार होता है की वोह साबित करे की उसने बलात्कार जैसा जघन्य अपराध नहीं किया है बल्कि यह सहमती से हुआ है | अनुभव अवन शोध यह भी बताते हैं की इस प्रकार की शिकायतों में पहल स्त्री ही करती है जो बाद में बलात्कार का कारन बनती है |

इस विषय पे खुलकर यह बात सामने नहीं आ पति है की बलात्कार किन कारणों से हुआ है क्योंकि पीडिता खुलकर इसका वास्तविक कारन नहीं बताती है | यह भी ध्यान देने वाली बात है की बलात्कारी पे  विशवास नहीं किया जा सकता | इस विषय पे स्वतंत्र रूप से सर्वेक्षन बहुत कम हुई हैं और समाज खुल कर इस विषय पे सबके सामने नहीं बोलता | अधिकतर नतीजे किसी न किसी दबाव के साथ आते हैं कभी दबंग पुरुष प्रधान का दबाव और कभी महिलाओं की संस्थाओं का दबाव | सत्य जैसे कोई सुनना या जानना ही नहीं चाहता हो|

कामिनी झा की बात से मैं पूर्ण सहमत हूँ की बलात्कारी एक जीवित मानव बम है और बलात्कार साबित होने पे बलात्कारी को बंध्या कर देना चाहिए या उसके गुप्तांग कार देने चाहिये ताकि वो ऐसी घटनाओं पे अंकुश लग सके |

लेखक  Dr. Dileep Kumar Singh Juri Judge, Member Lok Adalat,DLSA, Astrologist,Astronomist,Jurist,Vastu and Gem Kundli Expert. Cell:९४१५६२३५८३

सियासत की राहों पे चलना संभल कर | —लेखक डॉ दिलीप कुमार सिंह

सियासत की राहों पे चलना संभल कर | —लेखक डॉ दिलीप कुमार सिंह

कहते हैं कि राजनीती में कोई किसी का नहीं होता और अभी तक के अनुभव भी कुछ ऐसा ही सिद्ध करते हैं |देखने में यह भी आया है कि एक ही घर के लोग अक्सर अलग अलग राजनितिक दल से सम्बन्ध रखते हैं |स्वतंत्र भारत इस बात का सबसे अच्छा उदाहरण है जहां पर प्रारंभ में केवल कांग्रेस जनसंघ,वामदल अवं कुछ अन्य दल ही थे लेकिन आज इन्ही ४-५ दलों से सैकड़ों पार्टियाँ बन गयी हैं | राजनीती में सफलता पाने हेतु नैतिकता विहीन अवसरवाद सबसे बड़ा हथियार है | राजनीती की इस बलिवेदी पे इदिरा गाँधी,राजीव गाँधी,संजय गाँधी ,लाल बहादुर शास्त्री ,पंडित दीनदयाल उपाध्याय सहित जा जाने कितने चढ़ गए |इसीलिये राजनीती को “लखैरों की अंतिम परिणीती” कहा जाता है जहाँ सब कुछ जायज़ है |

राजनीति में आने वाले कितने ही लोग “बिना पेंदी के लोटे जैसे हुआ करते हैं |इसमें पता नहीं कब आक़ा समर्पित से समर्पित कार्यकर्ताओं,पदाधिकारियों ,सांसदों,विधायकों को निकाल फेंके और यह भी पता नहीं होता की घोर से घोर दुश्मन कब मिल जाए | इसी समझने के लिए सपा –बसपा ,सपा-भाजपा,सपा-कांग्रेस ,भाजपा-ममता ,जयललिता-कांग्रेस जैसे गठजोड़ों को देखें |राजनीती में कोई भी चीज़ स्थाई अथवा अपनी नहीं हुआ करती |श्रीमती मेनका गांघी का उदाहरण द्रष्टव्य है जो कांग्रेसी खानदान से होते हुए भी घोर भाजपाई हैं और उनका बीटा वरुण गाँधी भी उनके साथ है |

आज राजनीति का मुख्य लक्षया सफलता प् के येनकेन प्रकारेण कुर्सी हथिया के अपना कल्याण करना रह गया है भले ही इसके लिए जनकल्याण,समाज कल्याण का नारा दिया जाए |विश्व राजनीती भी कुछ इस से अलग नहीं है जैसे अटल बिहारी बाजपेयी ने सम्बन्ध सुधारने के लिए पाकिस्तान की यात्रा की और उसके बाद ही कारगिल युद्ध हो गया |कभी नेहरु हिंदी चीनी भाई भाई का नारा लगवा के गदगद होते हैं तो दूसरी तरफ चीन भयंकर आक्रमण देश का लाखों वर्गमील हड़पकर बार बार भारत को धमका कर उसकी सीमाओं में घुसने की फ़िराक में रहता है }चीन अमरीका के सम्बन्ध एक दुसरे से अच्छे न होते हुए भी एक दुसरे से सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार है| बंगला देश को आज़ाद करवाने वाले भारत के लिए आज बांग्लादेश ही सरदर्द बना हुआ है |कभी घूर दुश्मन रहे पूर्वी अवं पश्चिमी जेर्मनी का तथा कई अन्य देशों का विलय हो चुका है | रूस का पतन अवं वेघ्तन हो चुका है | इसी को सियासत की कठिन राहें कहते हैं जिनपे संभल के चलना आवश्यक है |

 

लेखक  Dr. Dileep Kumar Singh Juri Judge, Member Lok Adalat,DLSA, Astrologist,Astronomist,Jurist,Vastu and Gem Kundli Expert. Cell:९४१५६२३५८३